वर्णसंकरतासे बचना चाहिए विशेषकर ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्यों को

विकास की परिभाषा क्या है आजकल हमारा तात्पर्य है आजकल के राजनेताओ द्वारा परिभाषित विकास की परिभाषा क्या है वर्णसंकरता हिन्दू हो ब्राम्हण हो क्षत्रिय हो वैश्य हो अन्त्यज हो सभी एक दूसरे से संबंध करे अब तो बात दो कदम आगे चल पड़ी है

इंटरकास्ट(अंतरजातीय विवाह ) से इंटररिलीजिन तक (अपने धर्म के बाहर) चाहे ईसाई हो या मुसलमान आप यदि रोटी बेटी का संबंध नही कर पा रहे है तो आप पिछड़े आदर्श के व्यक्ति है समस्या क्या है निवारण क्या है कोई इसपर बात नही करना चाहता है आज कारण क्या है ब्राम्हण ठाकुरो के घर की लड़कियां इंटरकास्ट से इंटर रिलिजन तक जा रही है आप शिक्षा नही दे पाते है माँ बाप अपने धर्म की शिक्षा भी नही दे पाते है अपने बच्चो को लड़कियों से तक कमवता जा रहा है

अब आधुनिकता वाले आकर कहेंगे आप महिला सशक्तिकरण से कुढ़ते है आप पिछड़े आदर्श के व्यक्ति है सशक्तिकरण के नाम पर आज भारत मे शील की रक्षा स्वास्थ की रक्षा करना असंभव है अब हम आप से प्रश्न करते है आधुनिक विमर्षियों से यदि शील की रक्षा स्वास्थ की रक्षा सुद्धि का बचाव करना हो तो आप प्राचीन परंपरा को मानेगे या आधुनिक अब सनातन धर्म की शास्त्रीय विधा देखिए पहले 16 से 20 वर्ष की आयु तक विवाह हो जाता था चाहे लड़का हो या लड़की बाद में इसे अंग्रेजो की कूटनीति द्वारा गैरकानूनी बनाया गया उदाहरण आपके समक्ष है समाज टूट रहा है

धर्म का क्षरण हो रहा है वर्णसंकरता फैल रही है जहाँ देखो वही आग लगी है इसकी बेटी ले लो उसको बेटी दे दो न मन भरा तो अपने धर्म के बाहर अपनी बेटी दे दो उसकी बेटी ले लोऔर जो लोग कहते है न जी प्यार हो गया आप प्यार नही समझ सकते क्या चीज है तो सुनो प्यार व्यार कुछ नही होता है सही समय पर जब विवाह नही होता है तो प्यार हो जाता है

कुछ श्लोक श्रीमद्भागवत गीता से जो वर्णशंकर्ता के बारे में है-

●कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः । धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥

भावार्थ : कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं तथा धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है॥

●अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः । स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥

भावार्थ : हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है॥v

●संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥

भावार्थ : वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिए ही होता है। लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले अर्थात श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं॥v

●दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः । उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥

भावार्थ : इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैंv अब वैज्ञानिक विधा देख लेते है आजकल यही प्रमाणपत्र है

  1. यहां बात जेनेटिक बीमारियों की हुयी है तो याद रखिये की सबसे ज्यादा हिज़ड़े, मुसलमानो के यहां ही पैदा होते है (जनसँख्या के अनुपात में देखें)
  2. आप गूगल सर्च लें सिर्फ मेरी ही बात न माने, पाकिस्तान की लगभग 1/3 आबादी बिभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियों से ग्रस्त है।
  3. नर जानवर भी (शेर, चीता, बाघ, तेंदुआ) इत्यादि भी वयस्क होने पर अपना झुण्ड छोड़ देते हैं तथा नए झुण्ड की मादाओं के साथ प्रजनन करते हैं ताकि उनकी संतान बलशाली हो।
  4. खेत की फसलो में भी वर्णसंकर (Hybrid) बीजो का इस्तेमाल किया जाता है ताकि अच्छी पैदावार मिल सके, जो की दो भिन्न प्रजाति की बीजो को मिलाकर बनाया जाता है। जो बीज एक खेत में 3-4 बार इस्तेमाल हो जाए उसको बदलना ही पड़ता है वर्ना पैदावार खत्म हो जाती है।

उम्मीद है की आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा की अपनी जाति से बाहर विवाह क्यों नही करना चाहिये ये बेसिक सी समझ तो जानवरो और अनपढ़ किसानो में भी है

शेष अगले भाग में