द्रव्य शुद्ध

अध्याय – ६० द्रव्य शुद्धि


पुष्कर कहते हैं – परशुरामजी ! अब द्रव्यों की शुद्धि बतलाऊँगा | मिट्टी का बर्तन पुन: पकानेसे शुद्ध होता है | किन्तु मल-मूत्र आदिसे स्पर्श हो जानेपर वह पुन: पकानेसे भी शुद्ध नहीं होता | सोने का पात्र यदि अपवित्र वस्तुओं से छू जाय तो जलसे धोनेपर पवित्र होता है | ताँबेका बर्तन खटाई और जलसे शुद्ध होता है | काँसे और लोहे का बर्तन राखसे मलनेपर पवित्र होता है | मोती आदिकी शुद्धि केवल जलसे धोनेपर ही हो जाती है | जलसे उत्पन्न शंक आदि के बने बर्तनों की, सब प्रकार के पत्थर के बने हुए पात्र की तथा साग, रस्सी, फल एवं मूल की और वाँस आदि के दलों से बनी हुई वस्तुओं की शुद्धि भी इसीप्रकार जलसे धोनेमान्त्र से हो जाती है | यज्ञकर्म में यज्ञपात्रों की शुद्धि केवल दाहिने हाथसे कुशद्वारा मार्जन करनेपर ही हो जाती है | घी या तेलसे चिकने हुए पात्रों की शुद्धि गरम जलसे होती है | घर की शुद्धि झाड़ने-बुहारने और लीपने से होती है | शोधन और प्रोक्षण करने (सींचने) से वस्त्र शुद्ध होता है | रेह की मिट्टी और जलसे उसका शोधन होता है | यदि बहुत से वस्त्रों की ढेरी ही किसी अस्पृश्य वस्तु से छू जाय तो उसपर जल छिडक देनेमात्र से उसकी शुद्धि मानी गयी है | काठ के बने हुए पात्रों की शुद्धि काटकर छिल देने से होती है ||१-५||

शय्या आदि संहत वस्तुओं के उच्छिष्ट आदि से दूषित होनेपर प्रोक्षण (सींचने) मात्र से उनकी शुद्धि होती है | घी-तेल आदि की शुद्धि दो कुश पत्रों से उत्पवन करने (उछालने) मात्र से हो जाती है | शय्या, आसन, सवारी, सूप, छकड़ा, पुआल और लकड़ी की शुद्धि भी सींचने से ही जाननी चाहिये | सींग और दाँत की बनी हुई वस्तुओं की शुद्धि पीली सरसों पीसकर लगानेसे होती है | नारियल और तूँबी आदि फलनिर्मित पात्रों की शुद्धि गोपुच्छ के बालोंद्वारा रगड़नेसे होती है | शंख आदि हड्डी के पात्रों की शुद्धि सींग के समान ही पीली सरसों के लेपसे होती है | गोंद, गुड, नमक,कुसुम्भ के फूल, ऊन और कपास की शुद्धि धुप में सुखानेसे होती है | नदीका जल सदा शुद्ध रहता है | बाजार में बेचने के लिये फैलायी हुई वस्तु भी शुद्ध मानी गयी है ||६-९||

गौ के मूँह को छोडकर अन्य सभी अंग शुद्ध हैं | घोड़े और बकरे के मूँह शुद्ध माने गये हैं | स्त्रियों का मुख सदा शुद्ध है | दूध दुहने के समय बछड़ों का, पेड़ से, फल गिराते समय पक्षियों का और शिकार खेलते समय कुत्तों का मूँह भी शुद्ध माना गया है | भोजन करने, थूकने, सोने, पानी पीने, नहाने, सड़कपर घुमने और वस्त्र पहनने के बाद अवश्य आचमन करना चाहिये | बिलाव घुमने-फिरने से ही शुद्ध होता है | रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है | ऋतूस्नाता स्त्री पाँचवें दिन देवता और पितरों के पुजनकार्य में सम्मिलित होने योग्य होती है | शौच के बाद पाँच बार गुदामें, दस बार बायें हाथमें, फिर सात बार दोनों हाथों में, एक बार लिंग में तथा पुन: दो-तीन बार हाथों में मिट्टी लगाकर धोना चाहिये | यह गृहस्थों के लिये शौच का विधान है | ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासियों के लिये गृहस्थ की अपेक्षा चौगुने शौच का विधान किया गया है ||१०-१४||

टसर के कपड़ों की शुद्धि बेल के फल के गुदे से होती है | अर्थात उसे पानी में घोलकर उसमें वस्त्रको डुबो दे और फिर साफ़ पानी से धो दे | तीसी एवं सं आदि के सुतसे बने हुए कपड़ों की शुद्धि के लिये अर्थात उनमें लगे हुए तेल आदि के दाग को छुड़ाने के लिये पीली सरसों के चूर्ण या उबटन से मिश्रित जल के द्वारा धोना चाहिये | मृगचर्म या मृग के रोमों से बने हुए आसन आदि की शुद्धि उसपर जल का छींटा देने मात्र से बतायी गयी है | फूलों और फलों की भी उनपर जल छिडकने मात्र से पूर्णत: शुद्धि हो जाती है ||१५-१६||

इसप्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘द्रव्य-शुद्धि का वर्णन’ नामक साठवाँ अध्याय पूरा हुआ ||६०||