सभी वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ) को चाहिए कि वे उष:काल में उठकर पूर्व की ओर मुख करके देवताओं का ध्यान करके स्वधर्म, अर्थ तथा इनसे सम्बन्धित शारीरिक कष्टों तथा अपने आय - व्यय का विचार करें |

सर्वो ह्युष: प्राड्.मुखश्च चिन्तयेद्देवपूर्वकान् | धर्मानर्थांश्च तत्क्लेशानायं च व्ययमेव च ||

इन तथाकथित समाज सुधारक मूर्खों ने हमारे सनातन सभ्य समाज के अभिन्न अंग व सम्मान्य शूद्र वर्ण को #दलित कह कर पर्याप्त उत्पात किया व हमारी अन्यत्रालभ्य एकता को खण्डित करने का कुप्रयास किया है |

तदभिन्न यथा - हमारे क्षेत्र में सभी वर्ण है, तथा शैशव से ही देखते आए हैं कि सभी परस्पर प्रीति पूर्वक रहतें आऐ हैं, स्व स्व धर्म का पालन करतें हैं | कभी भी कोई जातीय संघर्ष न देखा न सुना |

सव_नर_करहिं_परस्पर_प्रीति...............

हमारी इस सभ्य समाज के अरवों वर्षों से चली आ रही अविच्छिन्न व परम प्रीति को ये धूर्त सहन नहीं कर पाते इसीलिए हममें फूट डालने का घृणित कार्य करतें है |

फटते भी है तो हम अपने अज्ञान, लोभ, मोह के कारण नही तो इन विधर्मियों की क्या योग्यता कि वे हमें अलग करे |

परस्पर प्रीति साथ खाने- पीने से ही होती है यह असत्य है | स्वयं देख लो एकछत में रहने वालों में कलह देखा जाता है | जो कि द्वेष की पराकाष्ठा है |

परस्पर शाश्वत प्रीति तो शास्त्रोक्त स्व - स्व धर्म पालन से ही होनी है | उसी से प्रत्येक के अभ्युदय व नि:श्रेयस की भी सिद्धि होनी है |

ये कोई काम नहीं आने वाले धर्म ही काम आऐगा | यत: परलोक मार्ग में यही एक जीव के साथ जाऐगा |

अत: भ्रमबन्धन को तोडो ! स्वधर्म से नाता जोडो !

जय श्री राम