गृह्यसूत्र मनुष्य जीवन के द्वितीय अवस्था गृहस्थ आश्रम के नियमों का वर्णन करता है । गृहस्थ आश्रम के नियमों का वर्णन करने वाले सूत्र हैं अतः इनको गृह्यसूत्र कहते हैं ।

मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उसके संस्कारों पर आधारित होता है , जो गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि तक शास्त्रों के अनुसार सम्पादित किये जाते हैं ।

संस्कार शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक कृ धातु से घञ् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है , जिसका अर्थ से होता है- दोषों का निराकरण करते हुए गुणों की आधान क्रिया का सम्पादन करना । गृह्य सूत्रों में सस्कारों की संख्या 16 है , जो इस प्रकार है- गर्भाधान , पुंसवन , सीमन्तोन्नयन , जातकर्म , नामकरण , निष्क्रमण , अन्नप्राशन , चूडाकर्म , विद्यारम्भ , कर्णभेद , उपनयन , वेदारम्भ , समावर्तन , विवाह , केशान्त और अन्त्येष्टि उपर्युक्त संस्कारों की विधियां , नियम एवं संस्कार का समय इत्यादि विषय गृह्यसूत्रों में विस्तार से वर्णित है ।

भारतीय गृहस्थ जीवन की पवित्रता , दैवीय बल के प्रति पूर्ण आस्था का स्वरूप तथा आदर्श जीवन पद्धति का स्वरूप कर्मकाण्ड के माध्यम से गृह्यसूत्रों में व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त किया गया है ।

हमारे जीवन में नित्य प्रति जाने - अनजाने कुछ गलतियां या दोष होते हैं और इन्हीं के प्रायश्चित्त के लिए बलिवैश्वदेव , देवयज्ञ , भूतयज्ञ , मनुष्ययज्ञ , तथा पितृयज्ञ - इन पंचमहायज्ञों का विधान , गृह्यसूत्रों में विस्तृत रूप से वर्णित है ।

साथ ही इनमें मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी गृहनिर्माण विधि , अपशकुन निवारण की विधियों के साथ - साथ पुनर्जन्म एवं स्वर्गादि की मान्यता पर भी प्रकाश डाला गया है ।

वर्तमान समय में उपलब्ध गृह्यसूत्र इस प्रकार है

  1. * ऋग्वेद अश्वलायन गृह्यसूत्र शंखयान गृह्यसूत्र कौशिकी गृह्यसूत्र
  2. * शुक्ल यजुर्वेद पारस्कर गृह्यसूत्र
  3. * कृष्ण यजुर्वेद बौधायन गृह्यसूत्र मानव गृह्यसूत्र हिरण्यकेशी / सत्याषाढ गृह्यसूत्र भारद्वाज गृह्यसूत्र आपस्तम्ब गृह्यसूत्र कथक गृह्यसूत्र लौगाक्षी गृह्यसूत्र अग्निवेश्य गृह्यसूत्र वाराह गृह्यसूत्र वैखानस गृह्यसूत्र वधूल गृह्यसूत्र
  4. * सामवेद गोभिल गृह्यसूत्र खदिर गृह्यसूत्र जैमिनीय गृह्यसूत्र कौथुम गृह्यसूत्र द्रहयान गृह्यसूत्र
  5. * अथर्ववेद कौशिक गृह्यसूत्र