all cast and his work

अपने कुल और बीज की रक्षा करे।

कुलीन जनों रोटी बेटिं का व्यवहार अपने ही समाज में करे।

अंतरजातीय_विवाहधर्मवराष्ट्रहेतुविषाणु दैनिक भास्कर' (दिनांक १५. १. १९९७)-के जयपुर-संस्करणमें यह समाचार प्रकाशित हुआ है-'पाश्चात्त्य संस्कृति और आधुनिकताके माहौलमें पारम्परिक रीति-रिवाजोंसे विवाह करना भले ही दकियानूसी माना जाता हो; किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिसे स्वास्थ्यके लिये यही उचित है। वैज्ञानिकोंने अन्तरजातीय विवाह-प्रथाको मानव-स्वास्थ्यके लिये हानिकारक बताया है। वैज्ञानिकोंका कहना है की समुदायसे बाहर शादी करनेवालोंकी सन्तानोंके शरीर मे किसी भी बिमारी होने की संभावना बढ जाती है।

इण्डियन साइंस कांग्रेसके चौरासीवें वार्षिक सम्मेलन में वैज्ञानिकोंने उक्त रहस्योद्घाटन किया। वैज्ञानिकों एवं मानवशास्त्रियोंने कहा कि भारतकी पारम्परिक वैवाहिक व्यवस्थासे छेड़छाड़ करनेके जनस्वास्थ्यपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे। विशेषज्ञोंने सदियों पुरानी वैवाहिक व्यवस्थाओंको विकृत करनेके जैविक दुष्परिणामोंके लिये आगाह किया। कलकत्ता विश्वविद्यालयमें मानव-विज्ञान-विभागमें मानव-जीन विषयके प्रोफेसर डॉ. देवप्रसाद मुखर्जीने अन्तरजातीय विवाहप्रथाके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावोंकी चर्चा करते हुए कहा कि हमें अपने समुदायके भीतर ही विवाह करनेको प्रोत्साहित करना चाहिये, अन्यथा मानव- घेनेस (जीन्स) की भयंकर क्षतिके दुष्परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि जीन्स-विकृतिसे शरीरमें सिकल सेन एनीमिया एवं जी-सिक्स पी० डी० की कमी हो जाती है। डॉ० मुखर्जीने कहा की वैज्ञानिक निष्कर्षोंको रूढ़िवादी कहकर उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये......... डॉ. मुखर्जीने बताया कि वैज्ञानिकोंने अन्तरजातीय विवाह करनेवाले कुछ लोगोंके अध्ययनके आधार पर 'प्राइवेट जीन्स' की पहचान की है।सभी जाति/समाज के अपने प्राईवेट जीन्स है जो लगभग भारतभर मे एक समान पाये जाते है। उन्होंने बताया कि भारतमें कुछ जीन्ससे पीड़ित व्यक्तियोंके शरीरपर बाल तथा अंगुलियोंपर नाखून नहीं पाये जाते हैं।

पश्चिम बंगालके चौबीस परगना क्षेत्रमें वैज्ञानिकोंने अन्तरजातीय विवाह करनेवाले कबीलों में मस्तिष्क कैंसर की शिकायत पायी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अध्ययनसे पता चलता है कि एक समुदायमें अहानिकारक रहनेवाले जीन्सके दूसरे समुदायमें अत्यन्त हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।

अंग्रेजी समाचार-पत्र THE TIMES OF INDIA (7. 1. 1999) में यह समाचार प्रकाशित हुआ है-CHENNAI: Noble laureate James Watson considered to be the father of DNA technique, has provided a shot in the arm for traditionalists. According to him, gene pools get better in arranged marriages.of India that he supported Indian research on caste-based DNA. "Genetics is not the root-cause of racism. Racism existed long before casteism", he said. He was responding to recent researches in Hyderabad and West Bengal which highlighted patterns of diseases and similar DNA patterns in various caste groups in India. These researches have, however, been opposed by certain quarters who say that they reinforce the 'varna' system with genetic evidence. “ I am excited about the history of India and the study of people with biotechnology", said Dr. Watson. He said while comparing genes and DNA to caste groups, " we must recognise that human beings are different. It is interesting to study how similar groups adapt to diseases, how isolated groups have greater probability of similar diseases and what is so unique about such groups." He said, " There has been so much discrimination against the so called untouchables, but genetics shows that they have differing genes. Let us not have opposition to human diversity in any form." Dr. Watson said that only time will tell, by studying the uniqueness of each caste group, how each “ tackled its particular problems." डी० एन० ए० तकनीकके जनक कहलानेवाले नोबल-पुरस्कार-विजेता जेम्स वॉटसनने पारम्परिक विवाह-प्रथाका समर्थन करते हुए कहा है कि इससे (अपनी जातिमें विवाह करनेसे) जीत-समूह अधिक लाभप्रद होते हैं।

'इण्डियन साइंस काँग्रेस' के ८६ वें सम्मेलनमें महत्त्वपूर्ण भाग लेनेवाले डॉ०वॉटसनने 'द टाइम्स ऑफ इण्डिया' को बताया कि वे जातिपर आधारित डी० एन०ए. की भारतीय खोजका समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि 'जैनेटिक्स (उत्पत्ति-विषयक शास्त्र) वंश-परम्पराका मूल कारण नहीं है। वंश-परम्परा तो जातिवादसे भी बहुत पहलेसे विद्यमान थी।' उन्होंने हैदराबाद और पश्चिमी बंगालमें हुए उन अनुसन्धानोंका समर्थन किया, जो भारतकी भिन्न-भिन्न जातियोंके समूहकी बीमारियों तथा डी० एन० ए० के नमूनोंपर प्रकाश डालते हैं। इन अनुसन्धानोंका कुछ लोगोंने यह कहकर विरोध किया है कि इससे वर्ण-व्यवस्थाको बल मिलेगा।

डॉ.वॉटसननें कहा कि 'मैं भारतके इतिहास एवं भारतीय लोगोंके जीव-विज्ञान-तकनीकके अध्ययनसे प्रभावित हूँ।' उन्होंने जीन्स और डी० एन० ए० की विभिन्न जातियोंसे तुलना करते हुए कहा कि 'हमें यह स्वीकार करना चाहिये कि मनुष्य-जातियाँ अलग-अलग हैं। यह अध्ययन रोचक है कि एक जातिके लोगों पर बीमारीका प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि दूसरी जातिके लोगोंपर उस बीमारीकी अधिक सम्भावना रहती है, न जाने उन जातियों में ऐसी क्या विशेषता है !' उन्होंने कहा कि 'अछूत कहे जानेवाले लोगोंके प्रति बड़ा भेद-भाव रहा है:परन्तु जैनेटिक्स बताता है कि उनमें अलग जीन्स हैं।

अतः हमें किसी भी प्रकारसे मनुष्योंकी इस भिन्नताका विरोध नहीं करना चाहिये।'

डॉ० वॉटसनने कहा कि प्रत्येक जातिकी विशेषताओंका अध्ययन करनेपर यह तो समय ही बतायेगा कि प्रत्येक जातिके लोगोंने अपनी विशिष्ट समस्याओंका समाधान कैसे किया।

आशास्पद बात यह है की आने वाले समय मे भारत का पुनः डीअेनअे विश्लेषण की आधुनिक तकनीक के प्रयोग से पुनः जाति व्यवस्था की विवाह व्यवस्था मे‌ अव्यवस्था से प्राप्त मलिनता/वर्णसंकरता निकालकर शुद्ध कर सकते है।

सनातन धर्म की विवाह व्यवस्था वैज्ञानिक व्यवहारी ओर दार्शनिक तीनो धरातल पर‌ सर्वोत्कृष्ट है। धर्म का जय हो

अधर्म का‌ नाश हो

प्राणीयो मे सद्भावना हो

विश्व का कल्याण हो

गौ हत्या बंध करो सरकार