अथ कंडोलब्राह्मणोत्पत्तिप्रकरणम् ( १५ )

तान्येव संतु वणिजां नानागोत्रोद्भवान्यपि ।।१२९।।

चामुंडाम्बिका गंगा महालक्ष्मीः कलेश्वरी ॥ १३० ॥

भोगा देवी वरा घाघा नान्येषां कुलदेवता ॥ ततो विलोकयन् कण्वो वणिज स्तान्कृतांजलीन् ॥ १३१ ॥

विनयावनतान्प्राह ब्रह्मर्षित्र लवित्तमान् !! आज्ञां गृह्णंतु वणिजः प्राग्वाडा ये च गालवा : ॥ १३२ ।।

निर्विकल्पा सदा सेवा करणीया द्विजन्मनाम् ॥ भवद्भिर्विश्वाक्यानि नोघ्यानि कदाचन ॥ १३३ ॥

स्वधर्मेण वर्तितव्यं नाधर्म कर्तुमर्हथ ॥ अहो विप्राः शृणुध्वं वो यदत्र कथयाम्यहम् ॥ १३४ ॥

अष्टादशैव गोत्राणि गौतमा दीनि वै द्विजाः ॥ गौतमः सांतों गायों वत्सः पाराशर स्तथा ॥ १३५ ॥

उपमन्युर्वेदलश्च वशिष्ठः कुत्सपौल्क सौ ॥ कश्यपः कौशिकश्चैव भारद्वाजः कपिटलः ॥ १३६ ॥

सारंगिरिश्च हरितो शांडिल्यः सनकिस्तथा ॥ गोत्राण्येतानि भो विप्राः स्थापितानि यात्र हि ॥१३७ ॥

वक्ष्यामि प्रवरा नेषां शृणुध्वं तान्समाहिताः || तथापि प्रवराण्यत्र गोत्राण्ये कादशैव च ॥ १३८ ॥

पंचर्षीणि च चत्वारि त्रीण्येकप्रव राणि च ॥ गौतमः सनकिः कुत्सो वत्स्यः पाराशरस्तथा ॥ ॥ १३ ९ ॥

कश्यपः कौशिकश्चैवोपमन्युबधलस्तथा ॥ शाखा माध्यदिनी येषां नवानामेव कीर्तिता ॥ १४० ॥

शांडिल्य - चैव गार्ग्यश्च हारीतश्च तृतीयकःशाखा च कौथुमी तेषां सामगानकृतामथा ।।१४१।।

मदीयस्थापनायोगात्सर्वे काण्वा भवंति हि परोपकारनिरताः सदाचारयालवः ।। १४३ ॥

क्षणध्यात्वा ततः कण्वोप्रावीद्विजपुंगवान्। भविष्य वः प्रवक्ष्यामिकियन्त्यःकुलदेवताः ॥ १४४ ||

एता देव्यो भविष्यति विप्राणां कुलदेवताः यत्रयत्र कृतावासा विलसंतः सदा मुदा ॥ ।।१४६ ॥

तत्रतत्रा चिंता देव्यो भवंतु फलदाः सदा ॥ इत्युक्त्वा प्राह राजानंमांधातारमुपस्थितम् ॥१४७ ||

पालयैनं महीपाल स्थानमे तदनुत्तमम् ॥ मया प्रतिष्ठित राजन्मजापालोऽस्ति यद्भ वान् ॥ १४८ ॥



।। इति श्री कंडोलब्राह्मणोत्पत्तिनाम प्रकरण संपूर्णम् ।।



है सोरठ वार्नये ! हे कपोल बानये ! तुम मेरी आज्ञा ग्रहण करो ।। १३२ ।।

तुम सब निष्कपटसे सदा सर्वदा ब्राह्मणों की खूब बिना स्वार्थ सेवा करना, उनका वचन उल्लंघन करना नहीं, ॥ १३३॥

स्वधर्मसे चलना अधर्म करना नहीं, हे ब्राह्मणो ! और तुमको जो कहता हूं सो श्रवणकरो। ( स्वधर्म - अपनी कुल् परम्परा , रीति रिवाज, विधि निषेध का पालन, मान मर्यादा, वेद शास्त्रों का ब्राह्मण से अध्यन करना , आदि आदि शास्त्रोक्त कर्म करना ) ॥ १३४ ॥

इस रीतिसे तुम्हारे कुल गोत्र शाखा कही और मैंने तुम्हारी स्थापना की है इसवास्ते तुम्हारा अठारह हजार ब्राह्मणोंका काण्व ब्राह्मण ( कंडोलिया ब्राह्मण ) नाम विख्यात होवेगा परोपकार करनेमें तत्पर सदाचारी धर्मनीश्ठ दयावान् होवेंगे ॥ १४३ ॥

पीछे क्षणभर ध्यान करके ब्राह्मणोंको कहनलगे हे ब्राह्मणो ! तुम्हारा भविष्य वृत्तांत कहता हूँ तुम्हारी कितनी कुलदेवता होवेंगी उनके नाम ॥ १४४ ॥

ये सब ब्राह्मणों की कुलदेवता होवेंगी जहां जहां ठिकाने ऊपर निवास करके आनंदमे रहेंगे ॥ १४६ ॥

उन उन ठिकानों में वे कुलदेवता पूजित होके फल दायक हों ऐसा कहके मांधाता जो सामने हैं उनकूं कहनेलगे ॥ ॥ १४७ ॥

हे मांधाता ! तू प्रजाका पालन करनेवाला है इस बास्ते मैंने जो अभी उत्तम यह स्थान प्रतिष्ठित किया है इसका पालन कर ।। ।।१४८।।

(गोत्र प्रवर आदि सम्पूर्ण के लिए कोष्ठक अवश्य देखे )

।।अब कंडोल ब्राह्मण उत्पति एवम् कपोल, सोरठ बनियों की उत्पति प्रकरण समाप्त हुआ।।

।। जय श्री मात सामुद्रि ।।

( संकलन - हर्ष अध्वर्यु )