अथ कंडोलब्राह्मणोत्पत्तिप्रकरणम् ( १४ )

सर्वे शृण्वंतु भो देवा स्थान कण्वेन स्थापितम्।मयिसाक्षिणियत्नेनाकल्पांतमधितिष्ठति ॥ ।।१२१ ॥ 

भवतः सर्व एवात्र निवसंतो दिवानिशम्। पालयंतु प्रजाःसर्वाःकण्वस्थाननिवासिनीः ॥ १२२ ॥ 

एवमुक्ते ततो ब्रह्मा विष्णुरुद्रयक्षपाः। धर्माग्निर्वरुणो वायुर्हनुमान्सर्वदेवताः ।। १२३ ।।

 स्वस्वनाम्ना च विख्यात तीर्थम कृत्वाथ जग्मिरे संभावयन्निजमुनीन् वणिजोऽथ महामुनिः ॥ १२४ ॥ 

सोऽपश्यद्वणिजस्तत्र गालवेन प्रतिष्ठितान् उवाचेति तदा कण्वःस्मितपूर्वमुदान्वितः ॥    ।।१२५ ॥ 

अग्रतो गालवादीनां वणिजां च द्विजन्मनाम्। गालवस्थापिता होते गालवा : संतु नामतः।।१२६ ।।

तएवापिकपोलाख्याःकपोलाद्भुतकुण्डलाः। ये च प्राग्वाडवा नित्यं शुश्रूषार्थमति वै ॥ १२७ ॥ 

प्राग्वाडाःस्युरभिख्याता गुरुदेवार्चनेरताः ॥ येषां प्राग्वाभवेद्वाडो मदी यस्थापनात्मकः ।। १२८ ।।

ते प्राग्वाडाअमीज्ञेया सौराष्ट्रराष्ट्रवर्द्धनाः गोत्राणि यानि विप्राणां गौतमादीनि सतिहि ।। १२ ९ ॥ 

हे देवो ! मेरा वचन सुनो यह स्थान कण्वऋषि ने स्थापन किया है मेरी साक्षीके वास्ते कल्पपर्यंत रहेगा ॥ १२१ ॥

 और तुम सब यहां निवास करो प्रजाका पालन करो ऐसा सूर्यने कहा ॥ १२२ ॥

 तब ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, कुबेर, धर्म अग्नि, वरुण, वायु, हनुमान् आदि सब देवता ॥ १२३ ॥ 

अपने अपने नामसे तीर्थ निर्माण करते गए, कण्वऋषि अपने स्थापना किये हुवे ब्राह्मण बनियोंका सन्मान करते हुए॥  ।। १२४ ॥ 

पीछे गालव ऋषिन जो छः हजार बनिये स्थापित किये उनकूं देखके प्रसन्न चित्तसे कृण्वऋषि कहते हैं || १२५ ॥ 

प्रथम गालव यहां बनिये ब्राह्मण ले कर आये और ये छः हजार बनिये गालवने स्थापन किये इसवास्ते इनका नाम गालव बनिये हुवा ॥ १२६ ॥ 

वे प्रागवाड हुए उनका दूसरा नाम सोरठिये वनिये ऐसे विख्यात हुआ जानना यद्यपि बनियोके गोत्र अनेक है तथापि जो ब्राह्मणोंके गौतमादिक गोत्र हैं वही बनियोंके जानने ॥ १२८ ॥ 

क्रमश: ( संकलन - हर्ष अध्वर्यु )